Space: स्पेस में नहीं होता मोबाइल नेटवर्क, फिर कैसे धरती पर होती है वीडियो कॉलिंग?

How Space Communication Works: अंतरिक्ष से धरती पर बिना मोबाइल नेटवर्क के वीडियो कॉल कैसे होती है? हाल ही में एयरफोर्स के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन से प्रधानमंत्री मोदी से बातचीत की, जिसने इस सवाल को फिर से चर्चा में ला दिया है।


हाल ही में भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) में पहुंचकर नया इतिहास रच दिया। इस मिशन का हिस्सा बनने के बाद उन्होंने अंतरिक्ष से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से वीडियो कॉल के जरिए लाइव बातचीत की। इस खास मौके ने लोगों के मन में एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया कि इतनी दूर, बिना किसी मोबाइल नेटवर्क और इंटरनेट के, अंतरिक्ष यात्री धरती पर किसी को वीडियो कॉल कैसे कर पाते हैं?

वैक्यूम में कैसे होता है कम्यूनिकेशन - फोटो : Freepik

वैक्यूम में कैसे होता है कम्यूनिकेशन


अंतरिक्ष में हवा नही होती। हवा होने के कारण वहां वैक्यूम होता है और इस वजह से वहां कोई मोबाइल नेटवर्क काम नहीं कर सकता। वहां इंटरनेट के तार या वाई-फाई जैसी कोई आम सुविधा मौजूद नहीं होती। इसके बावजूद वैज्ञानिक लगातार धरती से संपर्क में रहते हैं। यह चमत्कार विज्ञान और उच्च तकनीक की बदौलत संभव हुआ है।

NASA का SCaN सिस्टम है इस तकनीक की रीढ़ - फोटो : Freepik
NASA का SCaN सिस्टम है इस तकनीक की रीढ़ – फोटो : Freepik

NASA का SCaN सिस्टम है इस तकनीक की रीढ़


NASA का ‘स्पेस कम्युनिकेशन एंड नेविगेशन सिस्टम’ यानी SCaN इस पूरी प्रक्रिया का आधार है। यह सिस्टम ट्रांसमिशन, रिले और रिसेप्शन की मदद से काम करता है। संदेश को पहले कोड में बदलकर ट्रांसमिट किया जाता है, फिर नेटवर्क के माध्यम से रिसीवर तक पहुंचता है और अंत में डिकोड होकर ऑडियो या वीडियो फॉर्म में बदल जाता है।

एंटीना सिस्टम का भी है यागदान - फोटो : Freepik
एंटीना सिस्टम का भी है यागदान – फोटो : Freepik

एंटीना सिस्टम का भी है यागदान


स्पेस स्टेशन और धरती के बीच संपर्क बनाए रखने के लिए नासा ने दुनियाभर के सातों महाद्वीपों पर विशाल एंटीना लगाए हैं। इनकी लंबाई करीब 230 फुट होती है। इतना बड़ा आकार और हाई-फ्रीक्वेंसी होने के कारण ये उपकरण 200 करोड़ मील की दूरी तक सिग्नल भेजने और रिसीव करने में सक्षम हैं।

रेडियो वेव्स से लेकर लेजर तक की योजना - फोटो : Freepik
रेडियो वेव्स से लेकर लेजर तक की योजना – फोटो : Freepik

रेडियो वेव्स से लेकर लेजर तक की योजना


फिलहाल नासा रेडियोवेव्स के जरिए अंतरिक्ष से संचार करता है। लेकिन भविष्य को ध्यान में रखते हुए अब एजेंसी लेजर आधारित इन्फ्रारेड तकनीक पर काम कर रही है, जिससे डेटा ट्रांसमिशन और भी तेज और सटीक हो जाएगा।

रिले सैटेलाइट्स निभाते हैं अहम भूमिका - फोटो : AI
रिले सैटेलाइट्स निभाते हैं अहम भूमिका – फोटो : AI

रिले सैटेलाइट्स निभाते हैं अहम भूमिका


NASA के पास ऐसे कई रिले सैटेलाइट्स मौजूद हैं जो स्पेस स्टेशन और ग्राउंड स्टेशन के बीच सपोर्ट सिस्टम का काम करते हैं। ये सैटेलाइट्स मैसेज को इंटरसेप्ट कर आगे बढ़ाते हैं, जिससे सीधा संपर्क बना रहता है।

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